दिल्ली की जहरीली धुंध ने उड़ानों को किया ठप: 61 फ्लाइट रद्द, 400 से ज्यादा लेट; मेसी के भारत दौरे की योजनाओं पर भी ब्रेक
- byAman Prajapat
- 15 December, 2025
दिल्ली की सुबह अब सूरज की किरणों से नहीं, बल्कि धुंध की मोटी चादर से खुलती है। आसमान फीका, हवा भारी और सांस लेना किसी पुराने ज़माने की जंग लगी मशीन चलाने जैसा—कठिन, थकाऊ और डरावना। राजधानी एक बार फिर स्मॉग के शिकंजे में है, और इस बार असर सिर्फ आम लोगों तक सीमित नहीं रहा। हवाई यातायात से लेकर अंतरराष्ट्रीय खेल सितारों की योजनाओं तक, सब कुछ अटक गया है।
इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हालात ऐसे बने कि 61 उड़ानों को रद्द करना पड़ा और 400 से अधिक फ्लाइट्स देरी से चलीं। दृश्यता इतनी कम थी कि पायलटों के लिए सुरक्षित लैंडिंग और टेकऑफ जोखिम भरा हो गया। एयरलाइंस ने यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए कई उड़ानों को रोक दिया। नतीजा—एयरपोर्ट पर लंबी कतारें, बदहवास यात्री, और अनिश्चितता का माहौल।
स्मॉग कोई नई कहानी नहीं है। ये हर साल आता है, जैसे कोई पुराना भूत जो सर्दियों के साथ लौटता है। पर इस बार घनत्व ज्यादा है, असर गहरा है। वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। आंखों में जलन, गले में खराश, सिर भारी—ये अब अपवाद नहीं, रोज़मर्रा का सच है। बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए हालात और भी मुश्किल हैं।
एयरपोर्ट पर मौजूद यात्रियों ने बताया कि सूचना बार-बार बदल रही थी। कभी फ्लाइट लेट, कभी गेट बदला, और कभी अचानक रद्द। लोग फोन पर घरवालों को समझा रहे थे, काम की मीटिंग्स कैंसिल हो रही थीं, और कुछ तो ऐसे भी थे जिनकी ज़िंदगी के खास पल—शादी, इंटरव्यू, इलाज—सब अटक गए।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी। स्मॉग का साया खेल की दुनिया तक पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल आइकन लियोनेल मेसी से जुड़ी भारत में प्रस्तावित गतिविधियों और योजनाओं पर भी असर पड़ा। खराब मौसम और प्रदूषण के कारण आयोजकों को कार्यक्रमों की समय-सारिणी पर दोबारा विचार करना पड़ा। जब आसमान साफ न हो, तो सपनों की उड़ान भी लड़खड़ा जाती है—चाहे वो आम यात्री की हो या दुनिया के सबसे बड़े फुटबॉलर की।
विशेषज्ञ कहते हैं कि स्मॉग के पीछे कई कारण हैं—वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन, और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना। मौसम की स्थिरता और ठंडी हवा की कमी ने हालात और बिगाड़ दिए। हवा चलती नहीं, तो ज़हर यहीं ठहर जाता है। ये कोई अचानक आई आपदा नहीं, बल्कि सालों की लापरवाही का नतीजा है।

सरकार की ओर से आपात कदमों की बात होती है—निर्माण पर रोक, ट्रैफिक नियंत्रण, स्कूलों में सावधानियां। मगर सच बोलें तो ये सब अस्थायी मरहम हैं। असली इलाज आदतों में बदलाव है, नीतियों में सख्ती है, और अमल में ईमानदारी है। वरना हर सर्दी में हम यही खबर पढ़ेंगे—फ्लाइट्स रद्द, सांसें भारी, और भविष्य धुंधला।
दिल्ली की सड़कों पर लोग मास्क में दिख रहे हैं, जैसे किसी महामारी का दौर लौट आया हो। फर्क बस इतना है कि इस बार वायरस नहीं, हमारी हवा बीमार है। सोशल मीडिया पर लोग गुस्सा जता रहे हैं, मीम्स बन रहे हैं, पर भीतर कहीं एक थकान भी है—कब बदलेगा ये?
हवाई यातायात धीरे-धीरे सामान्य करने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन मौसम साफ होने तक राहत सीमित रहेगी। यात्रियों को सलाह दी जा रही है कि वे फ्लाइट स्टेटस पहले जांच लें, अतिरिक्त समय लेकर चलें और स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
ये खबर सिर्फ उड़ानों की नहीं, ये चेतावनी है। परंपरा कहती है कि शहर अपनी हवा से पहचाने जाते हैं—और अगर यही पहचान बन गई, तो ये हार होगी। पुरखों ने जिस दिल्ली को बसाया, वो सांस लेने लायक थी। आज की पीढ़ी को तय करना है कि आने वाली पीढ़ियों को हम क्या सौंपेंगे—नीला आसमान या धुंध की विरासत।
साफ शब्दों में कहें तो स्मॉग ने एक बार फिर दिल्ली को आईना दिखा दिया है। सवाल ये नहीं कि कितनी फ्लाइट्स रद्द हुईं, सवाल ये है कि हम कब जागेंगे।
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