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AIIMS के अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट का बड़ा दावा: स्ट्रोक से हुई लकवा की हालत सुधर सकती है—लेकिन एक कठिन शर्त के साथ

AIIMS के अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट का बड़ा दावा: स्ट्रोक से हुई लकवा की हालत सुधर सकती है—लेकिन एक कठिन शर्त के साथ

भूमिका: बीमारी नहीं, समय सबसे बड़ा दुश्मन

स्ट्रोक आज के दौर में उस चुपके से आने वाले तूफ़ान की तरह है, जो बिना दस्तक दिए किसी भी उम्र के इंसान को जकड़ लेता है। यही कारण है कि डॉक्टर इसे “ब्रेन अटैक” भी कहते हैं—क्योंकि यह दिल के दौरे की तरह ही अचानक आता है और मिनटों में दिमाग की कोशिकाओं को खत्म करना शुरू कर देता है।

दिल्ली के प्रतिष्ठित AIIMS के एक अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट ने हाल ही में इस मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है—ऐसा बयान जिसे सुनकर लाखों स्ट्रोक के मरीज़ों और उनके परिजनों में उम्मीद की लौ जग सकती है। उनका कहना है कि स्ट्रोक के कारण हुई लकवा जैसी स्थिति (पैरालिसिस) अक्सर वापस भी हो सकती है, लेकिन इसके साथ एक “कड़वी सच्चाई” भी जुड़ी है, जो जितनी सख्त है, उतनी ही महत्वपूर्ण।

डॉक्टर का दावा: पैरालिसिस को वापस लाना संभव—पर समय से लड़ाई जीतनी होगी

AIIMS के न्यूरोलॉजिस्ट के मुताबिक, स्ट्रोक दो प्रकार का होता है—

इस्कीमिक स्ट्रोक: जब दिमाग की नस ब्लॉक हो जाए

हेमरेजिक स्ट्रोक: जब नस फट जाए

अधिकतर मामलों में (लगभग 80%) इस्कीमिक स्ट्रोक होता है।

डॉक्टर का कहना है कि अगर इस्कीमिक स्ट्रोक वाले मरीज को ढाई से साढ़े तीन घंटे (3–4.5 hours) के अंदर सही इलाज मिले—मतलब ब्लॉकेज खोलने वाली दवा (थ्रोम्बोलिसिस) या आधुनिक मेकैनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की सुविधा—तो दिमाग की मृत हो चुकी कोशिकाओं को छोड़कर बाकी सभी बची हुई कोशिकाओं को पुनर्जीवित किया जा सकता है।

और यही वह बिंदु है, जहाँ “पैरालिसिस ठीक होने” की उम्मीद जन्म लेती है।

लेकिन यदि मरीज़ इस समय सीमा के बाहर पहुँचता है, तो डॉक्टर कहने में कतई संकोच नहीं करते—
“दिमाग इंतज़ार नहीं करता। जितनी देर करोगे, उतनी ज़िंदगी खो दोगे।”

गोल्डन आवर्स की सच्चाई: ये विंडो छोटी है, लेकिन चमत्कार इसी में छिपा है

स्ट्रोक के इलाज में “गोल्डन आवर” शब्द यूँ ही नहीं चल पड़ा। यह वो ख़ास समय होता है जब:

दिमाग की कोशिकाएँ मरने की कगार पर होती हैं

शरीर का एक हिस्सा सुन्न पड़ चुका होता है

मरीज का चेहरा टेढ़ा हो सकता है

हाथ-पैर बेकार हो सकते हैं

लेकिन दिमाग की कुछ कोशिकाएँ अब भी बची होती हैं—और इन्हें बचाने का एकमात्र रास्ता तुरंत इलाज है।

डॉक्टरों की भाषा में इसे penumbra कहते हैं—वही क्षेत्र जो मरने नहीं देता, लेकिन बचा भी नहीं रहता जब तक इलाज तेज़ी से न हो।

AIIMS डॉक्टर के शब्दों में,
“पैरालिसिस को रिवर्स होना चमत्कार नहीं—समय की जीत है।”

भारत में समस्या: लोग देर से अस्पताल पहुँचते हैं

यहाँ असली दर्द यही है।
भारत में:

60% लोग स्ट्रोक को दिल का दौरा समझ बैठते हैं

70% मामलों में मरीज 3 घंटे से अधिक देर से अस्पताल पहुँचता है

ग्रामीण क्षेत्रों में सही न्यूरोलॉजी सुविधाएँ बहुत कम हैं

परिणाम?
जब तक मरीज अस्पताल पहुँच पाता है, तब तक वही सुनना पड़ता है जो कोई भी परिवार नहीं सुनना चाहता—
“अब हम सिर्फ नुकसान को बढ़ने से रोक सकते हैं… बाकी सुधार की उम्मीद कम है।”

स्ट्रोक के शुरुआती लक्षण—जिन्हें नज़रअंदाज़ करना घातक है

डॉक्टर कहते हैं—लक्षणों की पहचान ही इस लड़ाई की जीत है।

FAST Rule (पूरी तरह हिन्दी में):

F – फेस: चेहरा टेढ़ा लगे

A – आर्म: एक हाथ उठाने पर नीचे गिर जाए

S – स्पीच: बोलने में लड़खड़ाहट या अस्पष्ट आवाज़

T – टाइम: तुरंत अस्पताल दौड़ें

इस एक मिनट की समझ लाखों जिंदगियाँ बचा सकती है।

क्या पैरालिसिस हमेशा रिवर्स हो सकता है?

AIIMS न्यूरोलॉजिस्ट साफ कहते हैं—
“हां, लेकिन हर केस में नहीं।”

यह किन पर निर्भर करता है?

इलाज कितनी जल्दी शुरू हुआ

दिमाग का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ

ब्लॉकेज कितना बड़ा था

मरीज़ की उम्र

पहले से कोई बीमारी (BP, Sugar) तो नहीं

लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर समय ही है।

A stroke stole her ability to speak. Eighteen years later, scientists used  AI to bring it back. - Berkeley News
AIIMS-Trained Neurologist Says Stroke Paralysis Can Be Reversed — But There’s a Catch

थ्रोम्बोलिसिस: वो इंजेक्शन जो नई उम्मीद देता है

सही समय पर दिया गया इंजेक्शन (tPA) खून का जमा थक्का पिघला देता है।
इसके बाद:

कई मरीज कुछ घंटों में हाथ-पैर हिलाने लगते हैं

कुछ में दो–तीन दिन में सुधार दिखता है

कई मामलों में पूरी रिकवरी देखी गई है

लेकिन डॉक्टरों की चेतावनी भी कड़ी है—
“ग़लत समय पर दिया गया tPA, मरीज की हालत और बिगाड़ सकता है।”
इसीलिए अस्पताल में सटीक जांच और CT/MRI का इंतज़ार ज़रूरी होता है।

मेकैनिकल थ्रोम्बेक्टोमी: आधुनिक विज्ञान का कमाल

AIIMS डॉक्टरों का कहना है कि बड़े स्ट्रोक मामलों में थ्रोम्बेक्टोमी नई उम्मीद है।
यह एक मिनी सर्जरी होती है, जिसमें एक पतली नली (कैथेटर) के जरिए नस में घुसकर खून का थक्का निकाला जाता है।

यह प्रक्रिया 24 घंटे तक भी की जा सकती है—मतलब गोल्डन ऑवर से आगे भी उम्मीद बनी रहती है।

भारत में जागरूकता की भारी कमी: डॉक्टरों की पीड़ा

AIIMS के न्यूरोलॉजिस्ट ने दुख जताते हुए कहा—
“हमारे पास इलाज है, मशीनें हैं, डॉक्टर हैं… बस लोग समय पर नहीं पहुँचते।”

कई बार परिजन सोचते रहते हैं कि मरीज़ “थकान से गिर गया होगा” या “नींद आ गई होगी।”
इन छोटी-छोटी गलतियों का परिणाम पूरी जिंदगी का बोझ बन जाता है।

रिकवरी कैसे होती है?

अगर इलाज समय पर मिल जाए, तो रिकवरी कुछ चरणों में होती है—

24 घंटे में दिमाग की सूजन कम होती है

कुछ दिनों में न्यूरॉन्स के बीच का संचार बेहतर होता है

हफ्तों में हाथ-पैर की हल्की हरकतें लौटती हैं

फिजियोथेरेपी के साथ महीनों में मरीज़ सामान्य जीवन में वापस लौट सकता है

कुछ लोग 80–90% तक सामान्य हो जाते हैं—यह सब समय पर इलाज की देन है।

डॉक्टरों की अंतिम चेतावनी

AIIMS के डॉक्टरों के अनुसार—
“स्ट्रोक से बचने का असली इलाज अस्पताल नहीं—समय की समझ है।”

स्ट्रोक कोई छोटी बीमारी नहीं।
यह दिमाग पर हमला है—और इस हमले में एक-एक मिनट जान का हिसाब लिख रहा होता है।

अंत में…

स्ट्रोक पैरालिसिस का रिवर्स होना कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की वास्तविक उपलब्धि है।
लेकिन यह तब ही संभव है जब परिवार घबराए नहीं, लक्षण पहचानें और तुरंत अस्पताल भागें।

क्योंकि—
“दिमाग की नस देर नहीं करती टूटने में…
और उम्मीद देर नहीं सहती पहुँचने में।”


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