नोएडा की सड़कों पर डर का साया: कैब चालक ने की अपहरण की कोशिश, चलती कार से कूदी युवती; पुलिस पर भी उठे सवाल
- byAman Prajapat
- 18 December, 2025
नोएडा की चमकती इमारतों और चौड़ी सड़कों के पीछे एक कड़वा सच फिर सामने आया है। रात का समय, शहर की रफ्तार धीमी, और एक युवती सुरक्षित घर लौटने के भरोसे कैब में बैठती है। भरोसा—जो आज के दौर में सबसे नाज़ुक चीज़ बन चुका है। उसी भरोसे को तोड़ते हुए कैब चालक पर अपहरण की कोशिश का आरोप लगा है। हालात ऐसे बने कि युवती ने अपनी जान बचाने के लिए चलती कार से छलांग लगा दी। यह कोई फ़िल्मी दृश्य नहीं, बल्कि नोएडा की असली कहानी है—कठोर, कड़वी, और डर पैदा करने वाली।
घटना के अनुसार, युवती ने सामान्य तरीके से कैब बुक की थी। शुरुआत में सब कुछ सामान्य लगा। कुछ दूरी तय होते ही चालक ने रास्ता बदलना शुरू किया। युवती ने जब सवाल किया, तो टालमटोल जवाब मिले। माहौल में अजीब सी चुप्पी घुलने लगी। शहर की रोशनी पीछे छूटती गई और डर आगे बढ़ता गया। युवती का आरोप है कि चालक ने सुनसान रास्ते की ओर गाड़ी मोड़ दी और उसके विरोध के बावजूद नहीं रुका।
यहीं से कहानी ने खतरनाक मोड़ लिया। युवती ने खुद को असुरक्षित महसूस किया। उसने बार-बार रुकने को कहा, मदद के लिए फोन मिलाया, लेकिन गाड़ी नहीं थमी। घबराहट और हिम्मत—दोनों साथ—उसने चलती कार से कूदने का फैसला किया। यह फैसला आसान नहीं था। सड़क पर गिरना, चोट लगना, जान का जोखिम—सब सामने था। फिर भी उसने छलांग लगाई। चोटें आईं, कपड़े फटे, शरीर दर्द से कांपा, पर सांसें बच गईं।
स्थानीय लोगों ने उसे संभाला और अस्पताल पहुंचाया। खबर फैलते ही मामला गरमाया। युवती के बयान सामने आए और आरोप सीधे कैब चालक पर गए। साथ ही, पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी उंगलियां उठीं। आरोप है कि शुरुआती शिकायत पर गंभीरता नहीं दिखाई गई, कार्रवाई में देरी हुई, और सवालों के जवाब टाले गए।
यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि सिस्टम की परतें खोलने वाली आईना है। कैब सेवाएं—जो सुविधा और सुरक्षा का वादा करती हैं—क्या सच में जवाबदेह हैं? ड्राइवरों की जांच, प्रशिक्षण, निगरानी—सब पर सवाल हैं। रात के सफर में महिलाओं की सुरक्षा क्या केवल एक नारा बनकर रह गई है?
पुलिस पर लगे आरोप भी हल्के नहीं हैं। पीड़िता का कहना है कि उसे बयान देने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। संवेदनशीलता की कमी और औपचारिकताओं का बोझ उस पर और बढ़ा। जब पीड़ित मदद के लिए दरवाजा खटखटाता है, तो सिस्टम का पहला जवाब ही भरोसा तय करता है। यहां भरोसा डगमगाता दिखा।
शहरों का सच यही है—चमक के बीच साए। हम तकनीक पर भरोसा करते हैं, ऐप पर भरोसा करते हैं, रेटिंग पर भरोसा करते हैं। पर सड़क पर उतरते ही असली परीक्षा होती है। यह घटना चेतावनी है—साफ, कड़ी, बिना मेकअप। महिला सुरक्षा को पोस्टर और भाषणों से नहीं, ज़मीनी कार्रवाई से मजबूत करना होगा।

कैब कंपनियों को ड्राइवर सत्यापन की प्रक्रिया और सख्त करनी होगी। निगरानी, त्वरित सहायता, और आपात व्यवस्था सिर्फ कागज़ पर नहीं, सड़क पर दिखनी चाहिए। पुलिस को शिकायत मिलते ही संवेदनशीलता, गति और पारदर्शिता दिखानी होगी। हर मिनट मायने रखता है।
युवती की हिम्मत ने उसकी जान बचाई, पर सवाल कायम हैं। क्या हर बार हिम्मत ही काम आएगी? या सिस्टम भी साथ देगा? शहर को जवाब चाहिए। अब चुप्पी नहीं चलेगी। यह कहानी किसी एक की नहीं—यह हर उस इंसान की है जो रात को सुरक्षित घर लौटना चाहता है।
साफ कहें तो—डर को आदत नहीं बनाना चाहिए। सुरक्षा कोई एहसान नहीं, हक है। और जब हक खतरे में हो, तो आवाज़ उठनी चाहिए। नोएडा की यह रात हमें यही याद दिलाती है—रास्ते तभी सुरक्षित होते हैं, जब जिम्मेदारी भी साथ चलती है।
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राजस्थान में अपराधों...
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