रणवीर सिंह की ‘धुरंधर’ का बॉक्स ऑफिस धमाका: कम शोज़ और बिना IMAX के भी ‘Avatar: Fire and Ash’ को भारत में पछाड़ा
- byAman Prajapat
- 22 December, 2025
भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ पल ऐसे होते हैं जब नंबर नहीं, नैरेटिव जीतता है। जब चमक-दमक, भारी बजट और तकनीक के सामने कहानी, जज़्बा और देसीपन खड़ा हो जाता है।
2025 के बॉक्स ऑफिस पर ऐसा ही एक पल लेकर आई है रणवीर सिंह की फिल्म ‘धुरंधर’।
जहाँ एक तरफ जेम्स कैमरून जैसे दिग्गज की हॉलीवुड मेगा-फ्रेंचाइज़ी Avatar: Fire and Ash थी — IMAX, 3D, VFX, ग्लोबल हाइप के साथ —
वहीं दूसरी तरफ थी धुरंधर:
कम शो
बिना IMAX
बिना किसी इंटरनेशनल प्रेशर
और फिर भी… जीत गई।
🎬 कम शो, लेकिन फुल हाउस
‘धुरंधर’ को शुरुआत में मल्टीप्लेक्स मालिकों ने हल्के में लिया।
स्क्रीन कम मिलीं, प्राइम स्लॉट सीमित रहे और IMAX तो दूर-दूर तक नहीं था।
लेकिन यहीं से खेल पलटा।
पहले दिन के बाद ही रिपोर्ट आने लगीं—
सिंगल स्क्रीन में हाउसफुल
टियर-2 और टियर-3 शहरों में टिकट ब्लैक
माउथ पब्लिसिटी ने सोशल मीडिया को पीछे छोड़ दिया
जहाँ Avatar बड़े शहरों और IMAX ऑडियंस तक सीमित रह गई,
वहीं ‘धुरंधर’ भारत की असली धड़कन तक पहुँच गई।
🔥 रणवीर सिंह: पूरा पैसा वसूल
साफ बात — यह फिल्म रणवीर सिंह के कंधों पर टिकी है, और उन्होंने बोझ नहीं बनने दिया।
‘धुरंधर’ में रणवीर न तो ग्लैमर बेचते हैं,
न ही स्टारडम का घमंड।
वह बेचते हैं ईमानदार एक्टिंग।
डायलॉग्स में वजन
आंखों में गुस्सा
बॉडी लैंग्वेज में मिट्टी की खुशबू
यह वही रणवीर है जो दर्शकों को याद दिलाता है कि
अभिनेता होना अलग बात है, स्टार होना अलग।
🌍 Avatar की कमजोरी: दूरी
Avatar: Fire and Ash तकनीकी रूप से भव्य है, इसमें कोई शक नहीं।
लेकिन भारतीय दर्शक अब सिर्फ विज़ुअल्स से नहीं पिघलता।
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बनी—
इमोशनल कनेक्ट की कमी
लंबा रनटाइम
कहानी से ज़्यादा स्पेक्टेकल पर फोकस
सीधे शब्दों में कहें तो,
आंखें खुश हुईं, दिल नहीं।
🇮🇳 देसी कहानी की वापसी
‘धुरंधर’ उस भारत की कहानी कहती है
जो मल्टीप्लेक्स के बाहर भी बसता है।
जहाँ नायक सुपरह्यूमन नहीं,
बल्कि सिस्टम से लड़ता इंसान होता है।
यही वजह है कि
उत्तर भारत
मध्य प्रदेश
राजस्थान
बिहार
महाराष्ट्र के अंदरूनी इलाके
इन सब जगहों पर फिल्म ने Avatar से बेहतर प्रदर्शन किया।

📊 बॉक्स ऑफिस नंबर क्यों मायने रखते हैं
हालांकि Avatar को ज्यादा शो और प्रीमियम टिकट मिले,
फिर भी नेट कलेक्शन में ‘धुरंधर’ आगे निकल गई।
इसका मतलब साफ है—
टिकट सस्ता था, लेकिन दर्शक ज्यादा थे।
यानी मास ऑडियंस ने फैसला सुना दिया।
🎥 IMAX नहीं, इंटेंसिटी काफी
आज के दौर में IMAX को जीत की गारंटी समझा जाता है।
लेकिन ‘धुरंधर’ ने साबित कर दिया कि
अगर कहानी दमदार हो,
तो कैमरा फॉर्मेट मायने नहीं रखता।
🧠 इंडस्ट्री के लिए सबक
इस टक्कर से बॉलीवुड और हॉलीवुड — दोनों को सीख मिलती है।
सिर्फ बजट नहीं, भावना बिकती है
सिर्फ तकनीक नहीं, किरदार चलता है
सिर्फ ब्रांड नहीं, भरोसा चाहिए
🧾 निष्कर्ष
‘धुरंधर’ की जीत सिर्फ एक फिल्म की जीत नहीं है।
यह जीत है उस सोच की,
जो मानती है कि भारतीय दर्शक अब बेवकूफ नहीं।
वह पूछता है—
कहानी क्या है?
किरदार में जान है या नहीं?
और अगर जवाब “हाँ” है,
तो बिना IMAX, बिना शोर,
वह फिल्म को सिंहासन तक पहुँचा देता है।
रणवीर सिंह की ‘धुरंधर’ ने यही करके दिखाया।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
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