लोकसभा में सतत परमाणु ऊर्जा विधेयक पेश करेंगे जितेंद्र सिंह, संशोधनों पर गंभीर विचार की अपील
- byAman Prajapat
- 16 December, 2025
संसद की दीवारों के भीतर जब कोई विधेयक पेश होता है, तो वह सिर्फ कागज़ों का पुलिंदा नहीं होता—वह आने वाले कल की नींव होता है। लोकसभा में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला सतत परमाणु ऊर्जा विधेयक भी कुछ ऐसा ही वादा करता है। यह विधेयक भारत की ऊर्जा कहानी में एक नया अध्याय जोड़ने की कोशिश है, जहां परंपरा और भविष्य आमने-सामने नहीं, बल्कि कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं।
आज का भारत ऊर्जा की भूख से भरा है। शहर चमकते हैं, गांव जागते हैं, उद्योग दौड़ते हैं—और इन सबके पीछे बिजली की अनवरत मांग है। कोयला, तेल और गैस ने दशकों तक देश को रफ्तार दी, लेकिन अब समय बदल चुका है। जलवायु परिवर्तन की मार, प्रदूषण का बोझ और आयात पर निर्भरता—ये सब मिलकर हमें आईना दिखा रहे हैं। और इसी आईने में परमाणु ऊर्जा एक गंभीर विकल्प की तरह उभरती है।
जितेंद्र सिंह का यह कदम अचानक नहीं है। यह उस सोच का विस्तार है जो कहती है कि भारत को स्वच्छ, सुरक्षित और आत्मनिर्भर ऊर्जा चाहिए। परमाणु ऊर्जा को अक्सर गलतफहमियों के चश्मे से देखा गया—डर, जोखिम और अनिश्चितता। लेकिन सच्चाई यह भी है कि सही नियमों, आधुनिक तकनीक और कड़े सुरक्षा मानकों के साथ यह ऊर्जा का एक भरोसेमंद स्तंभ बन सकती है।
विधेयक का मूल उद्देश्य साफ है—परमाणु ऊर्जा को सतत विकास के ढांचे में मजबूती से स्थापित करना। यानी ऐसी ऊर्जा जो आज की जरूरतें पूरी करे, बिना आने वाली पीढ़ियों का हक छीने। इसमें सुरक्षा प्रावधानों को मजबूत करना, तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना और पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता देना शामिल है।
लोकसभा में संशोधनों पर विचार की अपील अपने आप में एक राजनीतिक और लोकतांत्रिक संकेत है। यह कहना कि “आइए, बहस करें, सुधार करें, और बेहतर बनाएं”—आज के शोरगुल भरे समय में एक सधी हुई बात है। संसद का काम सिर्फ पास या फेल करना नहीं, बल्कि तराशना भी है। और यही तराशने की प्रक्रिया इस विधेयक को मजबूत बना सकती है।
भारत जैसे विशाल देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा सिर्फ अर्थशास्त्र नहीं, संप्रभुता का सवाल है। जब वैश्विक बाजार हिलते हैं, जब तेल की कीमतें आसमान छूती हैं, तब देश के भीतर स्थिर ऊर्जा स्रोत होना किसी कवच से कम नहीं। परमाणु ऊर्जा, अगर सही ढंग से इस्तेमाल की जाए, तो यह कवच बन सकती है।

इस विधेयक के समर्थन और विरोध—दोनों की आवाजें उठेंगी। कुछ लोग सुरक्षा को लेकर सवाल करेंगे, कुछ लागत को लेकर, तो कुछ पारदर्शिता पर। ये सवाल जायज़ हैं। लोकतंत्र सवालों से ही मजबूत होता है। लेकिन सवालों के साथ समाधान भी चाहिए। और यही वह मोड़ है जहां नीति, विज्ञान और जनहित को एक ही मेज पर बैठना होगा।
युवा भारत इस बहस को अलग नजर से देखता है। उसके लिए भविष्य सिर्फ नौकरी नहीं, सांस लेने लायक हवा और पीने लायक पानी भी है। अगर परमाणु ऊर्जा स्वच्छता, स्थिरता और विकास का संतुलन दे सकती है, तो उसे सिरे से खारिज करना भी उतना ही गलत होगा जितना आंख बंद कर अपनाना।
जितेंद्र सिंह की अपील—संशोधनों पर विचार—असल में यही कहती है कि यह अंतिम शब्द नहीं, शुरुआत है। एक ऐसी शुरुआत, जहां विज्ञान की समझ, नीति की दूरदर्शिता और जनता की चिंता—तीनों साथ चलें।
आखिरकार, ऊर्जा सिर्फ बल्ब जलाने की बात नहीं है। यह स्कूलों की रोशनी है, अस्पतालों की जान है, कारखानों की धड़कन है। और जब बात इतनी बड़ी हो, तो फैसले भी उतने ही सोच-समझकर होने चाहिए।
लोकसभा में पेश होने वाला यह विधेयक आने वाले दिनों में बहस का केंद्र बनेगा। कौन सा संशोधन स्वीकार होगा, कौन सा नहीं—यह संसद तय करेगी। लेकिन इतना तय है कि भारत की ऊर्जा यात्रा में यह पड़ाव अनदेखा नहीं किया जा सकता।
पुराने रास्तों की धूल झाड़ते हुए, नए रास्तों की तरफ बढ़ना आसान नहीं होता। मगर इतिहास गवाह है—जो देश समय पर साहसिक फैसले लेते हैं, वही आने वाले समय में मिसाल बनते हैं। सतत परमाणु ऊर्जा विधेयक उसी साहस की परीक्षा है।
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जीणमाता मंदिर के पट...
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