ममता बनर्जी ने लोकसभा में मोदी के ‘वंदे मातरम्’ चर्चा का स्वागत किया — राजनीतिक सौहार्द की नई लहर?
- byAman Prajapat
- 08 December, 2025
भारत की राजनीति, दोस्त, बड़ी अजीब सी नदी है —
कभी धीमी बहती है, कभी बाढ़ लाती है, और कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि यह नदी खुद रास्ता बदलकर हमें बता रही होती है कि असली कहानी अब शुरू हो रही है।
और इस बार कहानी की जड़ें जा टकराईं लोकसभा की उन दीवारों से, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वंदे मातरम्’ का ज़िक्र किया — एक ऐसा शब्द जो हर दौर में, हर सरकार में, हर ideology में अलग-अलग अर्थों में गूंजता रहा है।
लेकिन इस पूरी बहस का सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने इस चर्चा का खुले दिल से स्वागत किया।
हाँ, वही ममता दीदी — जिनका नाम लेते ही ज़्यादातर लोग दिल्ली और बंगाल की राजनीति के बीच चल रही खींचातानी की पुरानी कहानी याद कर लेते हैं।
पर इस बार vibe कुछ और थी।
कुछ ज़्यादा शांत, कुछ ज़्यादा grounded, और थोड़ी सी poetic भी — जैसे पुराने दौर की राजनीति आज की तेज़ रफ्तार democracy से हाथ मिलाने की कोशिश कर रही हो।
🔹 ममता बनर्जी का बयान: सीधा, सादा, लेकिन गूंजता हुआ
ममता बनर्जी ने कहा कि—
“वंदे मातरम् इस देश की विरासत है। इसका सम्मान हर किसी को करना चाहिए। अगर प्रधानमंत्री ने लोकसभा में इसकी बात उठाई है, तो यह अच्छी बात है।”
यह बयान छोटा था, पर असर बड़ा।
क्योंकि बंगाल की राजनीति में ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों पर लिखा हुआ एक पूरा संघर्ष है।
वही संघर्ष जो बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कलम से निकला और पूरे देश में आज़ादी की चिंगारी की तरह फैल गया।
ममता ऐसा बोलेंगी — किसी ने सोचा नहीं था।
पर राजनीति दोस्त, अक्सर वहीं मोड़ लेती है जहाँ लोग least expect करते हैं।
🔹 मोदी का ‘वंदे मातरम्’ संदर्भ — क्यों था इतना बड़ा?
लोकसभा में PM Modi ने वंदे मातरम् को देश की आत्मा बताया और कहा कि—
यह गीत
➡ स्वतंत्रता संग्राम का ईंधन था,
➡ लाखों क्रांतिकारियों की आवाज़ था,
➡ और आज भी भारत की एकता का प्रतीक है।
मोदी का भाषण भले ही राजनीतिक बहस का हिस्सा हो,
पर वंदे मातरम् का वजन हमेशा राजनीति से बाहर ही ज्यादा रहा है —
ये बात लगभग हर नेता मानता है, भले बोलता न हो।
🔹 क्या देश की राजनीति में नया ‘mood shift’ है?
यही सवाल सबसे बड़ा है।
क्योंकि
TMC बनाम BJP
कई सालों से एक गर्म, almost personal लड़ाई जैसा बन चुका था।
पर इस मुद्दे पर ममता का positive signal यह दिखाता है कि—
👉 शायद national symbols पर राजनीति के बजाय सम्मान की बात आगे बढ़ रही है,
👉 या शायद 2026 की political calculations बदल रही हैं,
👉 या शायद दोनों पार्टियाँ समझ रही हैं कि जनता अब ज़्यादा mature हो गई है।
Gen Z style me bolein to:
"Vibes shifting fr."
🔹 सोशल मीडिया पर कैसी प्रतिक्रिया मिली?
X (Twitter), Instagram, Facebook — हर जगह एक ही बात:
“Are BJP and TMC softening tones?”
“Is this a rare calm moment in Indian politics?”
“क्या राजनीति में थोड़ा सा positivity आ सकती है?”
कई लोग खुश थे कि कम से कम किसी national symbol पर दो बड़े नेताओं की राय एक जैसी दिखी।
कई ने इसे सिर्फ political strategy कहा।
लेकिन हर comment के बीच ये साफ था —
लोग इस बदलाव को notice कर रहे हैं।

🔹 बंगाल का संदर्भ: यहाँ वंदे मातरम् सिर्फ गीत नहीं है
बंगाल में वंदे मातरम् दिल से निकला हुआ emotion है।
यहाँ ये
⚫ स्कूलों में गूँजता है
⚫ नेताओं के भाषणों में आता है
⚫ कविताओं, rally, cultural events का हिस्सा है
⚫ और freedom struggle की यादों से जुड़ा है
यही वजह है कि ममता का यह बयान symbolic रूप से और बड़ा हो जाता है।
🔹 क्या यह BJP–TMC के रिश्तों में हल्की सी बर्फ पिघलने जैसा है?
देख, सच बोले तो —
पुरानी दुश्मनियों में softness आना भी एक खबर होती है।
Political world में ऐसे gestures बहुत rare होते हैं।
और जब आते हैं, तो ये संकेत देते हैं कि—
➡ कोई बड़ी लड़ाई खत्म नहीं हुई,
➡ पर एक छोटी सी दीवार जरूर हिली है।
इसे ‘political thaw’ कह लो,
या strategic silence,
या सिर्फ एक civil response —
पर माहौल थोड़ा बदला है।
🔹 बिना मीठा किए सीधी बात: यह सबका फायदा किसे?
चलो no sugar-coat mode on:
BJP का फायदा
अगर TMC जैसे बड़े regional leader national symbol पर उनकी बात का स्वागत करें, तो BJP खुद को ज्यादा inclusive दिखा सकती है।
TMC का फायदा
ममता दिखा सकती हैं कि वे national identity के मुद्दों पर neutral और balanced हैं —
क्योंकि कई बार TMC पर आरोप लगता है कि वे ऐसे प्रतीकों से दूरी रखती हैं।
जनता का फायदा
Less political toxicity.
Thoda sa saaf hawa.
Thoda sa respect in Parliament.
Simple.
🔹 क्या आगे भी ऐसा देखने को मिलेगा?
देख भाई, politics unpredictable है।
आज जो soft tone है, कल फिर clash में बदल सकती है।
लेकिन हर बड़ा बदलाव एक छोटे कदम से ही शुरू होता है।
और यह वाला कदम definitely notice-worthy है।
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जीणमाता मंदिर के पट...
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