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रेणुका चौधरी — NTR की शिष्या से लेकर कांग्रेस की विवाद-सक्षम अग्निशिखा

रेणुका चौधरी — NTR की शिष्या से लेकर कांग्रेस की विवाद-सक्षम अग्निशिखा

मेरी जानने-पढ़ने की प्यास के हिसाब से, चलिए रेणुका चौधरी के उस लंबे, उथल-पुथल भरे सफर को खोलकर देखते हैं — जहाँ कभी उन्होंने Telugu Desam Party (TDP) से शुरुआत की, तो आज Indian National Congress (INC) के वरिष्ठ नेता बन चुकी हैं; और जहाँ उनकी हर चाल ने राजनीति में हलचल मचा दी।

🌱 आरंभ — राजनीति में प्रवेश और प्रारंभिक पहचान

रेणुका चौधरी का जन्म 13 अगस्त 1954 को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में हुआ। 

उन्होंने बैंगलोर यूनिवर्सिटी से औद्योगिक मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।

1984 में राजनीति में कदम रखा, तब वे TDP से जुड़ीं। 

1986 से 1998 तक, उन्होंने लगातार दो बार Rajya Sabha में सदस्य रहकर TDP की तरफ से राज्यसभा में “चीफ व्हिप” का दायित्व निभाया — वह भी उन दिनों जब वे राजनीति में नए थीं। 

1997-98 में, H. D. Deve Gowda के नेतृत्व वाली सरकार में, उन्होंने केंद्र में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री का दायित्व संभाला। 

यह दौर ऐसा था जब भारत की राजनीति परिवर्तनशील हो रही थी — पर वही परंपराएं, वह पुराना ढांचा जस का तस था। उस युग में युवा नेता — खासकर महिलाएँ — को आसानी से स्थान नहीं मिलता था। लेकिन रेणुका ने दिखा दिया कि अगर जोश, समझदारी और राजनीतिक समझ हो तो पुरानी बंदिशों को भी पार किया जा सकता है।

🔄 बदलाव — TDP छोड़, कांग्रेस में शामिल और लोकसभा सांसद

1998 में, उन्होंने TDP छोड़ कर कांग्रेस जॉइन कर ली। 

1999 में पहली बार Khammam से लोकसभा चुनाव जीता और 13वीं लोकसभा की सांसद बनीं। वहीँ 2004 में दोबारा जनता ने उन्हें चुनकर 14वीं लोकसभा भेजा।

1999–2001 के दौरान वित्त समिति और महिला सशक्तिकरण समिति जैसी संवेदनशील समितियों में उनकी उपस्थिति रही। 

यह बदलाव आसान नहीं था। दल बदलना, नई पार्टी की विचारधारा में खुद को स्थापित करना और फिर जनता से न्याय मांगना — इन सबने साबित कर दिया कि राजनीति में बदलाव सिर्फ दिशा का नहीं, हौसले का भी होता है।

🏛️ केंद्र में मंत्री — जिम्मेदारियाँ और चुनौतियाँ

मई 2004 से, पहले वे पर्यटन विभाग में मंत्री रहीं। फिर जनवरी 2006 से मई 2009 तक, उन्होंने महिला एवं बाल विकास विभाग का स्वतंत्र प्रभार संभाला।

इस दौरान, महिलाओं, बच्चों और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कई मुद्दों पर उन्होंने आवाज़ उठाई — यह दिखाता है कि वे सिर्फ राजनीतिक चेहरा नहीं, संवेदनशील नेता भी हैं। 

लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में, उन्होंने अपनी खम्मम सीट हार दी। 

वाकई, सत्ता के गलियारों में पहुँचना आसान था — पर वहाँ टिके रहना सिर्फ लोकप्रियता या नाम की वजह से नहीं; समझ, संवेदनशीलता और दूरदर्शिता चाहिए थी। रेणुका ने इन सिद्धांतों की कद्र की।

🌪️ कल–विवाद — फायरब्रांड ट्रैक और राजनीति में तूफान

पिछले कुछ वर्षों में, रेणुका चौधरी का नाम कई बार सुर्खियों में रहा — और अक्सर विवादों की वजह से।

2018 में, जब Narendra Modi ने सदन में उनकी हँसी का मज़ाक उड़ाया और उसे 'रामायण' की 'शूर्पणखा' से जोड़ा, तो रेणुका ने मोर्चा संभाला — कहा कि “महिलाओं की मुस्कान को क्यों डर लगता है?” 

इसके बाद उन्होंने दिखा दिया कि राजनीति में वो हल्की-फुल्की नेता नहीं — जब ज़रूरत पड़े, तीखा हमला भी कर सकती हैं। 

2022 में हैदराबाद में हुए एक विरोध प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने एक पुलिसकर्मी का कॉलर पकड़ लिया — जिससे FIR दर्ज हुई। विवाद हुआ कि क्या एक पूर्व मंत्री का यह व्यवहार स्वीकार्य है? 

लेकिन शायद यही विवाद उनकी राजनीतिक पहचान की गरिमा है: शांत-स्वभाव में होलकर भी, जब ज़रूरत हो, तूफान खड़ा करना।

🐶 2025 — कुत्ते का विवाद, संसद में ड्रामा और फिर पत्ता-पत्ता चर्चा

हाल ही में, 1 दिसंबर 2025 को, जब संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ, रेणुका चौधरी सुर्खियों में आईं — अपनी कार में एक आवारा पिल्ला लेकर।

इस घटना को देखते हुए, सरकार पक्ष के सांसदों ने इसे “तमाशा” कहा, और कहा कि यह संसद की मर्यादा भंग करने की कोशिश है।

जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वे विशेषाधिकार हनन (privilege motion) का सामना करने को तैयार हैं, तो जवाब में उन्होंने ‘भौं-भौं’ कहकर चुप्पी साध ली — सीधे-सीधे तंज। 

उन्होंने सफाई दी कि वह उस कुत्ते को सड़क पर घूमता देख उठा कर पशु चिकित्सक के पास ले जा रही थीं — यह प्यार था, प्रदर्शन नहीं।

लेकिन सियासी गलियारों में विवाद गरमा गया। विपक्ष और मीडिया हर तरफ इस मुद्दे को उठा रहे हैं। 

यह घटना बताती है कि आज की राजनीति में केवल मुद्दों पर राय नहीं, अंदाज और प्रदर्शन ने भी भरपूर असर किया है। रेणुका चौधरी शायद जानती थीं कि ये कदम उन्हें मीडिया की लाइट में वापस लाएगा — और वो डट कर इस भूमिका में दिखीं।

Many shades of Renuka Chowdhury's stormy innings: NTR's protégé to Congress  firebrand | Political Pulse News - The Indian Express
Many Shades of Renuka Chowdhury’s Stormy Journey: From NTR Protégé to Congress Firebrand

📝 हाल की सामरिक बयानबाज़ियाँ — फिर से केंद्र में

सिर्फ कुत्ते का विवाद ही नहीं — 2025 के दिसंबर में, संसद के बाहर उन्होंने एक और बड़ा बयान दिया। कहा गया कि “सेना पर सरकार के समर्थन में बोलने का दबाव है।” 

उनकी यह आवाज़ नई नहीं थी — लेकिन इस बार उन्होंने इसे खुल कर कहा। परिणामस्वरूप, राजनीतिक हलचल तेज हुई, और विपक्ष-अभियोजन का माहौल पैदा हो गया।

🔎 निष्कर्ष — राजनीति की धुन पर एक तूफानी पन्ना

रेणुका चौधरी का सफर किसी सीधे-सादे ग्राफ की तरह नहीं रहा। वह उतार-चढ़ाव, संघर्ष, सत्ता, विवाद — सब देख चुकी हैं।

उनकी कहानी बताती है कि:

राजनीति सिर्फ दल और पद पाने का नाम नहीं — पहचान, हिम्मत, संवेदनशीलता और ज़रूरत पड़ने पर आवाज़ उठाने का नाम है।

पुरानी राजनीति में महिलाएँ अक्सर पीछे हट जाएँ — लेकिन रेणुका जैसी नेताओं ने दिखाया कि अगर हौसला हो, तो हर बार धैर्य और हिम्मत से कदम आगे बढ़ाया जा सकता है।

और आज राजनीतिक स्टेज सिर्फ पारंपरिक बहस तक सीमित नहीं; अंदाज, अभिनय, मीडिया, बयान — इन सबका अपना महत्व है।

चाहे वो आरम्भ हो, मंत्री रहना हो, लोकसभा सांसद बनना हो या 2025 का संसद-कुत्ता विवाद — हर पड़ाव पर रेणुका जानती रहीं कि राजनीति में सिर्फ खड़े रहना नहीं, खड़े होकर दखल देना ज़रूरी है।


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