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न्यूक्लियर बिल संसद में ‘बुलडोज़’: ‘पुराने दोस्त’ से ‘SHANTI’ बहाल करने की कोशिश में मोदी सरकार पर कांग्रेस का तीखा हमला

न्यूक्लियर बिल संसद में ‘बुलडोज़’: ‘पुराने दोस्त’ से ‘SHANTI’ बहाल करने की कोशिश में मोदी सरकार पर कांग्रेस का तीखा हमला

संसद, सत्ता और सवालों की टकराहट

संसद सिर्फ़ कानून बनाने की जगह नहीं होती, यह लोकतंत्र की आत्मा होती है। यहाँ बहस होती है, असहमति पलती है और सहमति जन्म लेती है। लेकिन कांग्रेस का आरोप है कि हालिया न्यूक्लियर बिल के मामले में यह आत्मा ही कुचल दी गई।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सरकार ने बहस, समीक्षा और संसदीय परंपराओं को दरकिनार करते हुए बिल को जल्दबाज़ी में पास कराया—ठीक वैसे, जैसे सड़क पर कोई बुलडोज़र चलता है, बिना पीछे देखे।

‘SHANTI’ शब्द और उसका सियासी मतलब

कांग्रेस ने अपने बयान में जिस शब्द का इस्तेमाल किया—‘SHANTI’—वह सिर्फ़ शांति नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक संकेत माना जा रहा है। विपक्ष का दावा है कि यह न्यूक्लियर बिल किसी घरेलू ज़रूरत से ज़्यादा विदेश नीति के दबाव और पुराने रिश्तों की मरम्मत के लिए लाया गया।
कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने “once good friend” यानी एक समय के करीबी अंतरराष्ट्रीय साझेदार के साथ बिगड़े रिश्तों को सुधारना चाहते हैं, और इसी मकसद से इस बिल को संसद में तेज़ी से आगे बढ़ाया गया।

कांग्रेस का सीधा हमला

कांग्रेस नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ़ कहा:

संसद में पूरा समय बहस नहीं हुई

विपक्ष के संशोधन प्रस्तावों को नज़रअंदाज़ किया गया

स्थायी समितियों की भूमिका को कमज़ोर किया गया

और सबसे अहम—देश को यह नहीं बताया गया कि इस न्यूक्लियर बिल से भारत को क्या मिलेगा और क्या दांव पर लगेगा

उनका कहना है कि अगर बिल इतना ही देशहित में था, तो सरकार को इससे डर क्यों लगा? बहस से भागना क्यों पड़ा?

सरकार का पक्ष: विकास और रणनीति

सरकार की ओर से पलटवार भी उतना ही सधा हुआ रहा। सत्ता पक्ष का कहना है कि यह न्यूक्लियर बिल:

भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ज़रूरी है

स्वच्छ और दीर्घकालिक ऊर्जा विकल्प देता है

भारत को वैश्विक न्यूक्लियर सहयोग में मज़बूत स्थिति में लाता है

सरकार का तर्क है कि विपक्ष बेवजह डर फैला रहा है और हर बड़े सुधार का विरोध उसकी पुरानी आदत है।

‘बुलडोज़ राजनीति’ का पुराना आरोप

यह पहला मौका नहीं है जब विपक्ष ने मोदी सरकार पर ‘बुलडोज़ राजनीति’ का आरोप लगाया हो। इससे पहले भी कई अहम विधेयकों पर यही कहा गया कि सरकार ने संख्या बल के दम पर फैसले थोपे।
कांग्रेस का कहना है कि यह सिर्फ़ कानून बनाने का तरीका नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्कृति पर हमला है।

संसद की परंपरा बनाम नई सियासत

भारत की संसदीय परंपरा हमेशा से बहस और सहमति की रही है। पुराने दौर में बिल पास होने से पहले लंबी चर्चाएँ होती थीं, विशेषज्ञ बुलाए जाते थे, और विपक्ष की बात सुनी जाती थी।
कांग्रेस का आरोप है कि मौजूदा दौर में संसद को सिर्फ़ “रबर स्टैंप” बना दिया गया है—जहाँ सवाल पूछना देशद्रोह और असहमति अड़चन मानी जा रही है।

SHANTI Bill: Opposition slams 'oligarchisation' of nuclear energy, raises  serious safety, liability concerns
Nuclear Bill ‘Bulldozed’ in Parliament to Help Modi Restore ‘SHANTI’ with ‘Once Good Friend’: Congress

जनता के लिए असली सवाल

इस पूरे विवाद के बीच आम आदमी के मन में कुछ सीधे सवाल उठते हैं:

क्या न्यूक्लियर बिल सच में देश के हित में है?

क्या इसे पास कराने की प्रक्रिया सही थी?

क्या विदेश नीति के लिए संसद को जल्दबाज़ी में इस्तेमाल किया गया?

और सबसे अहम—क्या लोकतंत्र में सवाल पूछना अब भी सुरक्षित है?

सियासत की धूप-छांव

सच यही है कि राजनीति में दोस्ती स्थायी नहीं होती, हित होते हैं। आज जो दोस्त है, कल रणनीतिक साझेदार बन जाता है। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि देश का संविधान और संसद किसी भी दोस्ती से ऊपर हैं
उनके मुताबिक, अगर ‘SHANTI’ चाहिए, तो वह पारदर्शिता से आए—बुलडोज़ से नहीं।

आगे क्या?

यह विवाद अभी ठंडा पड़ता नहीं दिख रहा। विपक्ष संसद के बाहर और भीतर दोनों जगह इस मुद्दे को उठाने की तैयारी में है। सरकार अपने फैसले पर कायम है।
अब नज़र जनता पर है—जो तय करेगी कि यह न्यूक्लियर बिल विकास की चाबी है या लोकतंत्र की दरार।

आख़िरी बात

इतिहास गवाह है—कानून तो पास हो जाते हैं, लेकिन तरीके हमेशा याद रखे जाते हैं।
आज संसद में जो हुआ, वह सिर्फ़ एक दिन की खबर नहीं, आने वाले कल की कहानी है।
और सच बोलें तो—अगर शांति चाहिए, तो पहले भरोसा बचाना होगा।
वरना बुलडोज़र की आवाज़ में संवाद हमेशा दब जाता है।


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