RJD ने बिहार चुनाव में पराजय स्वीकार की, कहा — हम ‘गरीबों की पार्टी’ हैं और उनकी आवाज बनकर रहेंगे
- byAman Prajapat
- 15 November, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम आया, और RJD (राष्ट्रीय जनता दल) को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। चुनावी नतीजों ने दिखाया कि NDA (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है, और उसी के अगले दिन RJD ने सार्वजनिक रूप से हार स्वीकार की। लेकिन हार के स्वीकारोक्ति के साथ ही पार्टी ने एक महत्वपूर्ण संदेश भी जारी किया — कि वह अब भी “गरीबों की पार्टी” है और लड़ाई सिर्फ एक चुनाव की नहीं, बल्कि उन लोगों की आवाज़ के लिए जारी रहेगी जो सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं।
पृष्ठभूमि और उम्मीदें
RJD हमेशा से बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण दल रहा है, विशेष रूप से उन वर्गों में जिनकी आवाज़ सुनना मुख्यधारा की राजनीति में अक्सर मुश्किल रहा है — यानि गरीब, पिछड़े, अल्पसंख्यक। इस चुनाव में, RJD ने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का प्रमुख चेहरा बनाया था, और उनकी झड़ी-बद्ध वादों पर काफी भरोसा दिखाया गया था। पार्टी ने युवाओं, बेरोजगारों, महिलाओं, किसानों और मेहनतकश तबकों को आकर्षित करने के लिए रोजगार, सामाजिक कल्याण और आर्थिक समानता के बड़े वादे किए थे।
लेकिन यथार्थ ने चारों ओर से चुनौतियाँ पेश कीं। कई विश्लेषकों ने कहा कि RJD की “वाद-प्रधान मुहिम” ने उनकी जमीन पर गहराई तक असर नहीं डाला।
Times of India की रिपोर्ट के मुताबिक, RJD सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई, जो पिछले चुनावों की तुलना में बड़ा झटका है।
Economic Times के विश्लेषक भी मानते हैं कि पार्टी ने मतदाताओं की प्राथमिकताओं को सही से नहीं समझा और गठबंधन प्रबंधन में चूक हुई।
हार के कारण: अंदरुनी और बाहरी चुनौतियाँ
RJD की हार का विश्लेषण करना मतलब सिर्फ हारना नहीं — यह देखना है कि पार्टी की राजनीति, उसकी रणनीति और उसका संगठन कहाँ कमज़ोर पड़ा:
मतदाता मूड का मिसरिडिंग
RJD ने अपनी मुहिम उन सामाजिक वादों पर आधारित की थी जो लंबे समय से पार्टी की पकड़ के हिस्से रहे हैं — गरीबी, बेरोज़गारी, शिक्षा, बिजली, महिलाओं की सुरक्षा। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि उनका संदेश वास्तविक किसानों और गरीबों के मुद्दों से पूरी तरह मेल नहीं खा पाया।
गठबंधन तनाव
महागठबंधन के अंदर सीटों के बंटवारे और तालमेल में दरारें दिखीं। पार्टियों के बीच तालमेल न हो पाने से वोट बैंक का अधिकतम उपयोग नहीं हो पाया, और कई जगहों पर गठबंधन का संदेश कमजोर पड़ा।
पारंपरिक वोट बैंक टूटना
बिहार में RJD का एक बड़ा वोट बैंक यादव और मुसलमान समुदाय रहा है। इस चुनाव में, रिपोर्ट्स में कहा गया है कि यादवों में नाराज़गी थी और मुस्लिम वोट बैंक भी पूरी तालमेल में सहभागी नहीं रहा। यह टूटना RJD के लिए बहुत बड़ा झटका रहा।
प्रतिस्पर्धा की तीव्रता
NDA ने इस चुनाव में बहुत मजबूत मोर्चा बनाया था। स्थानीय मुद्दों, जातिगत समीकरणों और विकास वादों के जरिए उसने अपनी पकड़ और मजबूत की। वहीं, RJD की रणनीति पूरी तरह प्रतिस्पर्धा के तीव्र माहौल में काम न कर पाई।
आयोजनात्मक कमजोरी
कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि RJD के संगठन स्तर पर कमज़ोरियां थीं — प्रचार, कैम्पेन मैनेजमेंट, और ग्राउंड लेवल मशीनरी में कमज़ोरी ने नुकसान पहुंचाया।
आतंकवाद और भीतरी कलह
हार के बाद, तेज प्रताप यादव ने “जयचंदों” की बात कही — उन लोगों की, जो पार्टी के भीतर कथित तौर पर विश्वासघात कर गए। यह संकेत देता है कि RJD के अंदर एक आंतरिक गुस्सा और विभाजन है, जिसे हार और नतीजों ने और उजागर कर दिया है।

RJD की प्रतिक्रिया — हार के बावजूद आवाज़ जारी
हार स्वीकार करने के बाद, RJD ने सिर्फ अपने नुकसान को नहीं माना बल्कि एक आत्म-परिभाषित बयान भी जारी किया — “हम गरीबों की पार्टी हैं।” यह सिर्फ राजनीति की बात नहीं थी, बल्कि एक भावनात्मक दायित्व। उन्होंने कहा कि हार से उनकी पहचान बदलती नहीं है; वो अभी भी उनकी लड़ाई लड़ेगी — गरीबों, पिछड़ों, हाशिये पर रहकर भी बोलने वालों की आवाज़ बनेगी।
पार्टी ने यह साफ किया कि यह हार सिर्फ एक चरण है। संगठन का कहना है कि वह आगे भी आर्थिक असमानताओं, सामाजिक अन्याय और वंचितों की आवाज़ उठाने में पीछे नहीं हटेगी। यह वादा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है; यह उनकी राजनीति का आधार है — और वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
लेकिन इस राह में चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं। हार के बाद पारिवारिक और संगठनात्मक कलह, नेतृत्व पर प्रश्न, नए गठबंधन की रणनीति — ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें RJD को जल्द देखना होगा।
भविष्य की रणनीति और संभावनाएँ
RJD के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं रहेगा, पर सुनहरे अवसर भी हैं:
पुनर्गठन: पार्टी को अपनी संगठनात्मक संरचना मजबूत करनी होगी — बूथ स्तर पर काम,Grassroots संगठन को फिर से जागृत करना होगा और नई पीढ़ी की भागीदारी बढ़ानी होगी।
संवाद में परिवर्तन: सिर्फ वादों की ज़रूरत है, बल्कि उनकी पहुंच पर भी ध्यान देना होगा। RJD को यह संदेश देना होगा कि उसकी योजनाएं सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि लागू भी होंगी — और उन्हें गरीबों तक कैसे पहुंचाने की रणनीति है।
साझेदारी और गठबंधन: महागठबंधन की पुनर्समीक्षा करना पड़ेगा, सीट साझा करने के तरीके, तालमेल और कॉमन एजेंडा पर काम करना होगा।
नेतृत्व सुधार: तेजस्वी यादव के नेतृत्व को नए सबूत और वैधता देना होगा — खासकर उन मतदाताओं को जो इस हार से निराश हैं। साथ ही, पार्टी को आंतरिक कलह को सुलझाने की दिशा में भी कदम उठाने होंगे, ताकि “जयचंदों” का मुद्दा और विभाजन असर न डाले।
जन-आंदोलन: RJD को सिर्फ चुनावी पार्टी के रूप में नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन की तरह खुद को पेश करना होगा। गरीबों, मेहनतकशों और पिछड़े वर्गों के साथ धरातल पर संपर्क बढ़ाना होगा — रैली, सार्वजनिक मंच, सामाजिक कार्यक्रमों के जरिए उनका भरोसा वापस जीतना होगा।
निष्कर्ष
RJD द्वारा हार स्वीकार करना सिर्फ हार की बात नहीं है — यह एक आत्म-प्रतिबिंब है: उन्होंने अपनी पहचान दोबारा व्यक्त की है, अपनी जड़ें याद दिलाईं हैं, और एक वादा किया है — कि उनकी लड़ाई सिर्फ एक चुनाव की नहीं, बल्कि उन लोगों की है जो अक्सर राजनीति के शोर में खो जाते हैं। “गरीबों की पार्टी” के नाम से उन्होंने ये कहा है कि यह संघर्ष सिर्फ संख्या की नहीं, इंसानों की है — और वे उनकी आवाज़ बने रहेंगे।
वास्तविक राजनीति में हार कोई अंत नहीं होती, बल्कि एक मोड़ होती है। RJD का यह बयान, उनका आत्म विश्वास, और उनकी आगे की रणनीति दिखाते हैं कि वे इस मोड़ को सिर्फ स्वीकार नहीं कर रहे — इसे अपनी नई शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। अगर वे अपनी जमीनी ताकत को फिर से मजबूत करें, संगठनात्मक पुनर्गठन करें और नया जन-संवाद स्थापित करें, तो उनकी “आवाज़” सिर्फ राजनैतिक नारे नहीं रहेगी, बल्कि वास्तविक बदलाव की एक लहर बन सकती है।
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