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शरद पवार चुप कितने समय तक? पार्थ जमीन विवाद पर वरिष्ठ नेता की निःशब्दता ने कांग्रेस को किया खीझित

शरद पवार चुप कितने समय तक? पार्थ जमीन विवाद पर वरिष्ठ नेता की निःशब्दता ने कांग्रेस को किया खीझित

1. प्रस्तावना — मौन जो बहुत कुछ कह गया

राजनीति में कभी-कभी शब्दों से ज़्यादा चुप्पी बोलती है। महाराष्ट्र की सियासत में भी इन दिनों ऐसा ही नज़ारा है — जब एनसीपी के संस्थापक और देश के वरिष्ठतम नेताओं में गिने जाने वाले शरद पवार, अपने ही परिवार से जुड़े एक विवाद पर खामोश हैं।
पुणे की ज़मीन के इस सौदे ने पूरे महाराष्ट्र में राजनीतिक तूफ़ान ला दिया है। पर पवार साहब का मौन, उस तूफ़ान के बीच की गूंज बन गया है — कांग्रेस पूछ रही है, “क्या यह खामोशी संकेत है या रणनीति?”

2. मामला क्या है — पुणे की ‘महत्वपूर्ण’ ज़मीन

विवाद की जड़ है पुणे के मुंधवा इलाके में करीब 40 एकड़ की सरकारी ज़मीन
यह ज़मीन मूल रूप से “महार वतन भूमि” के तहत आती थी — यानी इसे निजी स्वामित्व में नहीं लिया जा सकता था।
लेकिन आरोप यह है कि इसे एक प्राइवेट कंपनी को बेच दिया गया, जिसमें एनसीपी नेता अजित पवार के बेटे पार्थ पवार की हिस्सेदारी थी।

यह सौदा करीब ₹300 करोड़ रुपये में हुआ बताया गया, जबकि उसकी बाजार कीमत कई गुना ज़्यादा बताई जा रही है।
इससे सवाल उठे कि क्या यह सौदा नियमों के विरुद्ध हुआ? और क्या सत्ता के प्रभाव का उपयोग इसमें हुआ?

3. विवाद की चिंगारी कैसे भड़की

सब कुछ शांत चल रहा था, जब मीडिया में यह रिपोर्ट आई कि उस भूमि पर “डेटा सेंटर” बनाने के नाम पर स्टांप ड्यूटी में बड़ी राहत दी गई।
लेकिन जब राजस्व विभाग की रिपोर्ट सामने आई, तो खुलासा हुआ कि वास्तव में कोई ठोस प्रस्ताव नहीं था।
यानी — रियायत तो ली गई, लेकिन उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।

यह खबर सामने आते ही विपक्ष ने सवाल उठाए —

“क्या ये सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण नहीं?”

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मांग की कि इस सौदे की पूरी जांच हो, और जिनका नाम जुड़ा है, उन्हें जवाब देना चाहिए।

4. शरद पवार की चुप्पी — रणनीति या पारिवारिक दुविधा?

अब असली सवाल यहीं है — शरद पवार ने तुरंत कोई तीखी प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी?
राजनीति में उनका अनुभव 60 साल से ज़्यादा पुराना है। उन्होंने कई सरकारें बनते और टूटते देखी हैं।
लेकिन इस बार जब मामला उनके परिवार तक आया — उनके भतीजे अजित पवार के बेटे पार्थ तक — तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा:

“सरकार जांच करे। जो भी तथ्य हैं, वो सामने आएंगे।”

बस इतना। न कोई बचाव, न कोई आक्रोश।
कांग्रेस के नेता नाना पटोले ने इस पर तीखी टिप्पणी की —

“पवार साहब अगर निष्पक्षता की बात करते हैं, तो उन्हें अपने लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई का समर्थन करना चाहिए।”

कांग्रेस का मानना है कि शरद पवार की यह चुप्पी राजनीतिक रूप से “सेफ प्ले” है — ताकि परिवार और पार्टी दोनों से टकराव न हो।

5. गठबंधन की राजनीति — MVA के भीतर बेचैनी

महा विकास आघाड़ी (MVA) — यानी कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी — पहले से ही आंतरिक खींचतान में फंसी हुई है।
अजित पवार का गुट पहले ही भाजपा के साथ सत्ता में है, जबकि शरद पवार का गुट विपक्ष में बैठा है।
अब पार्थ पवार के विवाद ने शरद पवार की स्थिति और कठिन बना दी है।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि शरद पवार की चुप्पी “राजनीतिक सुविधा” से प्रेरित है।

“अगर यही मामला किसी और पार्टी का होता, तो एनसीपी सबसे पहले सड़कों पर उतर आती,”
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ऑफ रिकॉर्ड कहा।

6. जनता की नजर में क्या असर पड़ा?

जनता अब सवाल उठा रही है कि जो नेता हमेशा पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करते हैं, वे अब खुद खामोश क्यों हैं?
सोशल मीडिया पर #SharadPawarSilent और #ParthLandDeal जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
लोगों ने कहा — “सत्ता हो या विपक्ष, सब अपने परिवार के लिए मौन हैं।”

कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला आने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनेगा।
कांग्रेस इसे “भ्रष्टाचार और पारिवारिक प्रभाव” के उदाहरण के रूप में पेश करेगी।

7. कानूनी मोर्चा — जांच की मांग

महाराष्ट्र सरकार ने अब इस जमीन सौदे की जांच का आदेश दे दिया है।
राज्य राजस्व विभाग ने कहा है कि अगर स्टांप ड्यूटी में छूट गलत आधार पर दी गई, तो वसूली होगी।
कांग्रेस चाहती है कि जांच “ED या CBI स्तर” की हो, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।

पार्थ पवार ने अपने बयान में कहा है:

“हमने कोई गलत काम नहीं किया। सब कुछ नियमों के अनुसार किया गया है। हम जांच में सहयोग देंगे।”

8. शरद पवार का वक्तव्य — “हम एक हैं, पर विचारधारा अलग”

जब विवाद ने रफ़्तार पकड़ी, तब आखिरकार शरद पवार ने मीडिया से कहा:

“हम एक परिवार हैं, लेकिन हमारी विचारधाराएं अलग हैं। पार्थ ने जो भी किया, उसकी जांच होनी चाहिए, पर निर्णय सरकार को लेना है।”

यह बयान सुनकर सब समझ गए कि उन्होंने दूरी बना ली है — न पूरी तरह समर्थन, न विरोध।
राजनीतिक तौर पर यह “संतुलन की कला” है, जिसमें पवार माहिर हैं।

Maharashtra News: 'Na tired hu, na retired hu', Sharad Pawar tells Ajit |  Today News

9. कांग्रेस की झुंझलाहट — गठबंधन के रिश्तों में दरार

कांग्रेस नेताओं ने खुलकर कहा कि पवार साहब की यह नरमी गठबंधन की आत्मा को चोट पहुंचाती है।
उनका तर्क है कि अगर एक सहयोगी दूसरे के मामलों में चुप रहे, तो जनता के बीच गठबंधन की छवि कमजोर होती है।

“हम भाजपा के खिलाफ लड़ाई साथ मिलकर लड़ रहे हैं। अगर अंदर से ही सॉफ्टनेस दिखेगी, तो जनता भरोसा कैसे करेगी?” — कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा।

10. अजित पवार की रणनीति — परिवार के भीतर शतरंज

अजित पवार पहले ही भाजपा के साथ मिलकर डिप्टी सीएम हैं।
उनके बेटे पार्थ पर विवाद का असर उनके राजनीतिक करियर पर पड़ सकता है।
पर अजित पवार का रुख भी दिलचस्प है — उन्होंने न अपने बेटे का खुला बचाव किया, न ही शरद पवार की आलोचना।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि अजित पवार इस पूरे मामले को “संतुलित ढंग से ठंडा करने” की कोशिश में हैं।

11. शरद पवार की छवि — बुजुर्ग राजनेता की संयम नीति

शरद पवार भारतीय राजनीति के “ग्रैंडमास्टर” माने जाते हैं।
उनकी हर चाल सोच-समझकर होती है।
संभव है कि उनकी यह चुप्पी कोई “मौन रणनीति” हो — जिससे समय आने पर वे खुद को ऊपर रख सकें, जबकि बाकी दलों के बीच कलह बढ़ती रहे।

उनके समर्थक कहते हैं —

“पवार साहब हमेशा आख़िरी में बोलते हैं, और जब बोलते हैं, तो दिशा बदल जाती है।”

12. आगे का रास्ता — क्या यह मौन टूटेगा?

अब सबसे बड़ा सवाल है — क्या शरद पवार कभी खुलकर बोलेंगे?
क्या कांग्रेस को जवाब मिलेगा?
या यह विवाद धीरे-धीरे राजनीतिक धूल में दब जाएगा?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे, कांग्रेस इस मुद्दे को फिर उछालेगी।
पवार की चुप्पी उस वक्त उनके लिए भी चुनौती बन सकती है — खासकर तब, जब जनता पारदर्शिता की मांग करेगी।

13. निष्कर्ष — मौन की राजनीति

इस पूरे घटनाक्रम ने यह दिखाया कि राजनीति में “मौन” भी एक हथियार है।
शरद पवार जानते हैं कब बोलना है और कब चुप रहना है।
पर यह चुप्पी इस बार उनके गठबंधन के लिए आसान नहीं रही।

कांग्रेस की बेचैनी बढ़ रही है, विपक्ष के तीर तेज हो रहे हैं, और जनता यह सोच रही है —

“क्या यह वही पवार हैं जिन्होंने हमेशा अन्याय पर आवाज उठाई?”


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