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पश्चिम बंगाल के ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ा विवाद: हिंदी भाषी इलाकों में भारी कटौती, मुस्लिम बहुल सीटें लगभग अप्रभावित

पश्चिम बंगाल के ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ा विवाद: हिंदी भाषी इलाकों में भारी कटौती, मुस्लिम बहुल सीटें लगभग अप्रभावित

पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर हलचल है। वजह है नई ड्राफ्ट मतदाता सूची, जिसने आते ही सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। जैसे ही यह सूची सार्वजनिक हुई, कई विधानसभा क्षेत्रों से एक ही तरह की आवाज़ उठने लगी—
“नाम था, अब नहीं है।”

खास बात ये है कि शिकायतें ज़्यादातर उन इलाकों से आ रही हैं जहाँ हिंदी भाषी आबादी बड़ी संख्या में रहती है। इसके उलट, जिन सीटों पर मुस्लिम मतदाता बहुसंख्यक हैं, वहाँ से ऐसी शिकायतें बेहद कम सामने आई हैं। यहीं से पूरा विवाद जन्म लेता है।

ड्राफ्ट मतदाता सूची क्या होती है?

सीधी भाषा में समझो—ड्राफ्ट वोटर लिस्ट एक कच्ची सूची होती है। इसमें नए नाम जोड़े जाते हैं, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं। यही वो स्टेज है जहाँ जनता आपत्ति दर्ज करा सकती है।

लेकिन इस बार कहानी कुछ और ही रंग ले आई।

हिंदी भाषी क्षेत्रों में नाम कटने का आरोप

उत्तर बंगाल से लेकर कोलकाता के बाहरी इलाकों तक, कई सीटों पर हिंदी भाषी मतदाताओं ने दावा किया कि:

वर्षों से मतदान कर रहे लोगों के नाम गायब हैं

परिवार के कुछ सदस्यों के नाम हैं, कुछ के नहीं

पुराने पहचान पत्र होने के बावजूद नाम हटाए गए

इन इलाकों में रहने वाले लोग सवाल पूछ रहे हैं—
अगर हम यहीं रहते हैं, यहीं काम करते हैं, टैक्स देते हैं, तो वोट क्यों छीना जा रहा है?

और सच कहें तो ये सवाल हवा में नहीं हैं। लोकतंत्र की जड़ ही वोट है। अगर वही हिल जाए, तो सिस्टम पर भरोसा भी हिलता है।

मुस्लिम बहुल सीटें लगभग अप्रभावित क्यों?

दूसरी तरफ, कई मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों से ऐसी कोई बड़ी शिकायत नहीं आई। न नाम कटने की व्यापक खबरें, न ही लंबी कतारें आपत्ति दर्ज कराने की।

यहीं से विपक्ष को मुद्दा मिल गया। आरोप लगने लगे कि:

मतदाता सूची संशोधन में चयनात्मक रवैया अपनाया गया

कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया

चुनाव से पहले जनसांख्यिकी संतुलन बदलने की कोशिश हुई

भले ही ये आरोप साबित हों या न हों, लेकिन शक का बीज पड़ चुका है।

राजनीतिक दलों का आमना-सामना

इस मुद्दे पर राजनीति पूरी तरह गरमा चुकी है।

विपक्षी दल कह रहे हैं कि यह सीधा-सीधा मतदाता दमन है। उनका दावा है कि हिंदी भाषी मतदाता पारंपरिक रूप से कुछ खास दलों की ओर झुकाव रखते हैं, इसलिए उनके नाम हटाए जा रहे हैं।

सत्ताधारी पक्ष इन आरोपों को सिरे से खारिज कर रहा है। उनका कहना है कि यह एक नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया है और जिनके नाम कटे हैं, वे तय समय में आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

लेकिन जनता पूछ रही है—
हर चुनाव से पहले ही ऐसे “नियमित” विवाद क्यों खड़े हो जाते हैं?

चुनाव आयोग की भूमिका और जिम्मेदारी

चुनाव आयोग ने सफाई दी है कि:

ड्राफ्ट सूची अंतिम नहीं है

सभी नागरिकों को दावा और आपत्ति का पूरा मौका मिलेगा

किसी समुदाय को जानबूझकर निशाना नहीं बनाया गया

कागज़ों में सब ठीक लगता है। लेकिन ज़मीनी सच्चाई ये है कि:

गरीब और मजदूर वर्ग को प्रक्रिया समझ में नहीं आती

दफ्तरों के चक्कर काटना आसान नहीं

कई लोग डर या जानकारी के अभाव में चुप रह जाते हैं

और यहीं लोकतंत्र सबसे ज़्यादा कमजोर पड़ता है।

West Bengal draft rolls: Seats with sizable Hindi speakers see high voter  deletions, Muslim-dominated seats largely unaffected | Political Pulse News  - The Indian Express
West Bengal Draft Electoral Rolls: Seats with Large Hindi-Speaking Population See High Voter Deletions; Muslim-Dominated Seats Largely Unaffected

पहचान, भाषा और राजनीति

बंगाल कोई साधारण राज्य नहीं है। यहाँ भाषा, पहचान और राजनीति हमेशा से उलझी रही है। हिंदी भाषी आबादी—चाहे वो प्रवासी मजदूर हों, व्यापारी हों या दशकों से बसे परिवार—अक्सर खुद को हाशिए पर महसूस करती है।

मतदाता सूची से नाम कटना सिर्फ प्रशासनिक गलती नहीं लगता, बल्कि पहचान पर चोट जैसा महसूस होता है।

आम मतदाता की चिंता

सड़क पर खड़े आम आदमी से पूछो तो जवाब सीधा है:
“साहब, वोट ही नहीं रहेगा तो बोलेंगे कैसे?”

उनके लिए ये नीतियों का खेल नहीं, रोज़मर्रा की जिंदगी का सवाल है। वोट उनका हथियार है, उनकी आवाज़ है। और जब वही छिनता दिखे, तो गुस्सा लाज़मी है।

आगे क्या?

आने वाले हफ्तों में ये मुद्दा और तेज़ होगा।

आपत्तियाँ दर्ज होंगी

सुधार होंगे या नहीं, ये देखना बाकी है

चुनाव आयोग की निष्पक्षता की असली परीक्षा होगी

एक बात साफ है—
अगर मतदाता सूची पर भरोसा डगमगाया, तो चुनाव परिणामों पर भी सवाल उठेंगे।

अंतिम बात

लोकतंत्र पुराने उस पेड़ जैसा है जिसकी जड़ें वोट में हैं।
अगर जड़ सूखने लगे, तो ऊपर की हरियाली भी दिखावा बन जाती है।

पश्चिम बंगाल की ड्राफ्ट मतदाता सूची ने यही चेतावनी दी है।
अब देखना ये है कि सिस्टम इसे समय रहते सुनेगा…
या फिर हर चुनाव की तरह, शोर थमने का इंतज़ार करेगा।


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