टैरिफ़ का वार: कैसे व्यापारिक करों ने लगभग क्रिसमस की खुशियाँ छीन लीं
- byAman Prajapat
- 25 December, 2025
🎄 1. क्रिसमस: सिर्फ़ त्योहार नहीं, एक वैश्विक अर्थव्यवस्था
क्रिसमस कोई साधारण तारीख नहीं है। यह वो मौसम है जब दुनिया खरीदती है—दिल खोलकर, जेब खोलकर। खिलौनों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक, सजावट से लेकर कपड़ों तक, हर चीज़ की मांग आसमान छूती है।
पर इस बार कहानी कुछ और ही थी।
दुकानों की रौशनी तो थी, पर ग्राहकों की मुस्कान में झिझक थी। वजह? टैरिफ़।
💣 2. टैरिफ़ क्या होते हैं और क्यों लगते हैं?
सीधे शब्दों में कहें तो टैरिफ़ एक तरह का सरकारी टैक्स होता है, जो आयातित सामान पर लगाया जाता है।
सरकारें इसे तीन वजहों से लगाती हैं:
घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए
व्यापार घाटा कम करने के लिए
राजनीतिक दबाव या व्यापार युद्ध के तहत
काग़ज़ों में यह नीति मजबूत लगती है, लेकिन ज़मीन पर इसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है।
📦 3. जब सप्लाई चेन चरमराने लगी
क्रिसमस से पहले दुनिया की सप्लाई चेन पहले ही दबाव में थी—
महामारी के बाद का असर, युद्ध, ईंधन की महंगाई।
इसी बीच जब टैरिफ़ बढ़े, तो आयात महंगा हो गया।
नतीजा?
कंटेनर रुके
ऑर्डर कैंसिल हुए
स्टॉक कम पड़ा
खिलौनों के गोदाम आधे खाली, और जो थे, वो सोने के भाव बिक रहे थे।
🧸 4. खिलौनों से लेकर टेक गैजेट तक, सब महंगे
क्रिसमस का मतलब बच्चों के लिए तोहफ़े।
लेकिन इस बार माता-पिता के लिए एक सवाल था:
“खुशी खरीदें या बजट बचाएं?”
खिलौनों की कीमतों में 20–40% तक उछाल
मोबाइल, लैपटॉप, गेमिंग कंसोल महंगे
सजावटी सामान लग्ज़री बन गया
टैरिफ़ ने सीधे-सीधे क्रिसमस को महंगाई का त्योहार बना दिया।
🏪 5. छोटे व्यापारियों की टूटी कमर
बड़े ब्रांड किसी तरह झेल लेते हैं, लेकिन छोटे व्यापारी?
उनके पास न तो बड़ा स्टॉक होता है, न ही मोलभाव की ताक़त।
लागत बढ़ी
मुनाफ़ा घटा
कई दुकानों ने डिस्काउंट देने से हाथ खींच लिया
कुछ जगहों पर तो दुकानों ने साफ़ लिखा:
“कीमतें हमारे हाथ में नहीं हैं।”
👨👩👧 6. आम परिवारों पर सीधा असर
क्रिसमस की मेज़ पर केक था, पर चिंता भी थी।
लोगों ने:
कम खरीदारी की
सस्ते विकल्प चुने
कई ने तोहफ़े देने ही छोड़ दिए
त्योहार, जो कभी दिलों को जोड़ता था, इस बार खर्चों का हिसाब बन गया।

🌍 7. राजनीति बनाम त्योहार
यह सवाल उठना लाज़मी था—
क्या व्यापारिक नीतियाँ त्योहारों से ऊपर हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि टैरिफ़ का समय गलत था।
अगर इन्हें कुछ महीने टाल दिया जाता, तो बाज़ार को राहत मिल सकती थी।
लेकिन राजनीति अक्सर कैलेंडर नहीं देखती।
📉 8. अर्थव्यवस्था को क्या मिला?
टैरिफ़ से सरकार को राजस्व तो मिला,
लेकिन:
उपभोक्ता खर्च घटा
खुदरा बिक्री प्रभावित हुई
बाज़ार में अनिश्चितता बढ़ी
यानि जो सोचा गया था, नतीजा वैसा नहीं निकला।
🔮 9. आगे क्या?
अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही रुख जारी रहा, तो:
आने वाले त्योहार भी प्रभावित होंगे
वैश्विक व्यापार और सख़्त होगा
महंगाई स्थायी बन सकती है
कुछ देश अब टैरिफ़ में ढील देने पर विचार कर रहे हैं, ताकि बाज़ार फिर सांस ले सके।
🎁 10. क्रिसमस बच गया, लेकिन सबक छोड़ गया
क्रिसमस पूरी तरह चोरी नहीं हुआ,
लेकिन उसने हमें एक कड़वा सच दिखा दिया—
जब नीतियाँ कठोर होती हैं, तो खुशियाँ महंगी हो जाती हैं।
त्योहार दिल से मनाए जाते हैं,
पर उन्हें बचाने के लिए समझदारी ज़रूरी है—
सरकारों की भी, और सिस्टम की भी।
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