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“बांग्लादेश सिर्फ एक धर्म का नहीं”: हिंसा और अस्थिरता के बीच तारीक़ रहमान का धर्मनिरपेक्ष चुनावी दांव

“बांग्लादेश सिर्फ एक धर्म का नहीं”: हिंसा और अस्थिरता के बीच तारीक़ रहमान का धर्मनिरपेक्ष चुनावी दांव

बांग्लादेश एक बार फिर इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा है, जहाँ हर शब्द आग बन सकता है और हर बयान सियासत की दिशा बदल सकता है। सड़कों पर बेचैनी है, राजनीति में ज़हर घुला हुआ है और आम आदमी सिर्फ इतना पूछ रहा है—“यह देश आखिर किसका है?”

इसी सवाल के बीच बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारीक़ रहमान का बयान सामने आता है, जो सीधे दिल पर चोट करता है और दिमाग को झकझोर देता है—

“बांग्लादेश सिर्फ मुसलमानों का नहीं है, यह हिंदुओं, ईसाइयों और हर नागरिक का देश है।”

यह कोई साधारण लाइन नहीं थी। यह एक सोचा-समझा, तपा-तपाया हुआ चुनावी दांव था।

जब देश में डर बोलता है और नेता चुप रहते हैं

पिछले कुछ महीनों से बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों, राजनीतिक हिंसा और प्रशासनिक सख्ती की खबरें लगातार सामने आई हैं। मंदिरों पर हमले, अल्पसंख्यक इलाकों में तनाव, और सरकार पर पक्षपात के आरोप—सब कुछ मिलकर एक खौफनाक तस्वीर बना रहे हैं।

ऐसे माहौल में ज़्यादातर नेता या तो चुप रहते हैं या गोल-मोल बातें करते हैं। लेकिन तारीक़ रहमान ने चुप्पी तोड़ी।
सीधा बोला।
नो फिल्टर।

और यही बात उनके बयान को भारी बना देती है।

कौन हैं तारीक़ रहमान और बयान का असली मतलब क्या है?

तारीक़ रहमान, दिवंगत राष्ट्रपति ज़ियाउर रहमान के बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। लंबे समय से निर्वासन में रह रहे तारीक़ अब खुद को सिर्फ सत्ता का दावेदार नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय एकता की आवाज़” के रूप में पेश कर रहे हैं।

उनका यह बयान दरअसल तीन लेयर में काम करता है:

अल्पसंख्यकों को भरोसा
यह सीधा संदेश है कि BNP सत्ता में आई तो धार्मिक पहचान के आधार पर कोई दूसरा दर्जा नहीं होगा।

सरकार पर हमला
बिना नाम लिए मौजूदा सत्ता पर यह आरोप कि देश को एक धर्म या एक विचारधारा में कैद किया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय संकेत
पश्चिमी देशों और मानवाधिकार संगठनों को साफ मैसेज कि BNP सेक्युलर और लोकतांत्रिक लाइन पर है।

बांग्लादेश की राजनीति: धर्म, डर और वोट

सच बोलें तो बांग्लादेश की राजनीति में धर्म हमेशा से एक अघोषित हथियार रहा है।
कभी खुलकर, कभी छुपकर।

एक तरफ़ अवामी लीग खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती है, दूसरी तरफ़ ज़मीनी सच्चाई कुछ और कहती है।
BNP पर भी पहले कट्टरपंथी तत्वों से नज़दीकी के आरोप लगते रहे हैं।

ऐसे में तारीक़ रहमान का यह बयान BNP के पुराने “टैग” को तोड़ने की कोशिश है।
यह कहना कि—
“हम बदले हैं, वक्त बदला है, और सियासत भी बदलेगी।”

ग्राउंड रिएक्शन: भरोसा या शक?

ग्राउंड पर प्रतिक्रिया मिली-जुली है।

अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग इसे “उम्मीद की किरण” मान रहे हैं

वहीं कई लोग कह रहे हैं—
“बयान अच्छे होते हैं, लेकिन सुरक्षा ज़मीन पर चाहिए।”

और सच यही है।
बांग्लादेश की जनता अब भाषणों से आगे की राजनीति चाहती है।

Bangladesh belongs to Muslims, Christians, Buddhists, Hindus: Tarique  Rahman's call for unity on return home
‘Bangladesh Belongs to Muslims, Hindus, Christians’: Tarique Rahman Pushes Secular Poll Pitch Amid Political Unrest

हिंसा के बीच सेक्युलरिज़्म का रिस्क

सीधी बात—यह दांव आसान नहीं है।

जब देश में तनाव हो, तब धर्मनिरपेक्षता की बात करना साहस मांगता है।
कट्टर वोटबैंक नाराज़ हो सकता है।
गली-मोहल्लों में गलत नैरेटिव फैल सकता है।

लेकिन शायद यही तारीक़ रहमान की चाल है—
जोखिम लो, लेकिन कहानी बदलो।

2025 चुनाव और यह बयान क्यों अहम है?

आने वाले चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं हैं।
यह तय करेंगे कि बांग्लादेश—

डर से चलेगा

या भरोसे से

धर्म से बँटेगा

या नागरिकता से जुड़ेगा

तारीक़ रहमान का यह बयान उस लड़ाई की पहली बड़ी लाइन है।

सीधी बात, बिना शुगरकोट किए

यह बयान अगर सिर्फ वोट के लिए है, तो इतिहास इसे नकार देगा।
लेकिन अगर यह नीति में बदला, कानून में उतरा और ज़मीन पर दिखा—
तो यह बांग्लादेश की राजनीति का टर्निंग पॉइंट बन सकता है।

पुराने बांग्लादेश की रूह हमेशा से बहुधर्मी रही है।
सवाल बस इतना है—
क्या आज के नेता उस रूह को ज़िंदा रखने का दम रखते हैं?

तारीक़ रहमान ने दावा किया है।
अब बारी हकीकत की है।


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